कहानी का प्लाट (प्रेरक लघुकथाएं)
इससे पहले वह किसी पुलिस चौकी या थाने में नहीं गया था । यद्यपि अपनी कहानियों में उसने पुलिस स्टेशन के ख़ाके खींचे थे । चाहता तो वह उन गुंडों से निपट सकता था पर उसके शरीर ने ऐसा करने की इज़ाज़त नहीं दी थी । दूसरी तरह की घटना या दुर्घटना हुई होती हो वह दोस्त या परिचित के साथ रिपोर्ट लिखवाने आता, लेकिन यह मामला विशुद्ध उसका ही था।
अभी रात नहीं हुई थी । पर सर्दियों में शाम भी रात का एक अंग लगती है । मुंशी जी अपना रोजनामचा भरने में व्यस्त थे। वह कुछ देर सोचता रहा । किसी ने भी उसका नोटिस नहीं लिया । जबकि इंस्पेक्टर तीन आदमी और कांस्टेबिल किसी केस में उलझे हुए थे । इंस्पेक्टर नीचे बैठे हुए आदमी को बीच-बीच में गाली देता था और कभी-कभी उसकी पीठ भी थपथपा देता था।
'कहो जनाब, क्या बात है ?' मुंशीजी ने नाक का चश्मा ऊपर करते हुए अपनी तिकोनी टोपी को संभाला ।
'जी, मैं रिपोर्ट लिखवाने आया हूँ ।'
'किसकी रिपोर्ट ?'
'कुछ गुंडे एक लड़की को ज़बरदस्ती उठा ले गए हैं ।'
'कौन लड़की, तुम्हारी क्या लगती है ?'
इस पर वह भौंचक्का हो, मुंशीजी की तरफ़ देखने लगा ।
'अबे, वो क्या तेरी बहन है ?'
'नहीं...वो...' वह कुछ सोचने लगा कि क्या बोले ।
'अबे, जब वो तेरी कुछ नहीं, तब तुझे क्या दर्द है ? जा अपना काम कर..'
'रामप्रसाद ! ज़रा अखबार देना ।' यह आवाज़ इंस्पेक्टर की थी ।
'जी साब !' कह कर मुंशीजी ने अख़बार बढ़ा दिया ।
'हाँ बे लौंडे, अब बता भी दे कि तुझे अफ़ीम कौन सप्लाई करता है वरना....’ यह कहते ही उसने ज़मीन पर बैठे मैले-कुचैले आदमी के ठोकर जमाई । वह आदमी सहमकर रह गया पर बोला कुछ नहीं ।
'रामप्रसाद !' लड़की के प्रेमी ने यह सुना तो चौंक पड़ा । यह तो उसे मालूम था कि उसकी प्रेमिका का बाप इसी थाने में है। पर यह नहीं पता था कि वह किस पद पर है । उसके जी में आया कि वह चिल्लाकर कहे, 'रामप्रसादजी, आपकी लड़की का गुंडों ने अपहरण कर लिया है । वह मेरी क्लास-फ़ैलो है । हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं ।'
वह तेज़ी से थाने से निकल आया । आज उसको एक अच्छी कहानी का प्लाट मिल गया था ।